हे बसंत!!!!
तू फिर घुस आया
मेरे बेडरूम में,
मुझे सताने,
अमराई की सुगंध,
और सरसों की पायल
छनकाते
कोयल की कूक पर ,
ताल देती चैती को
लेकर सोनराया गेहूं,
और फाग खेलते
सरसों,टेसू और पलास
सबको लेकर
बार क्यों घुस आते हो?
जानते नहीं
बेडरूम बड़ी पिरैवेट जगह है
नाहक डिस्टर्ब मत करो
जानते नहीं मेरा समय
कितना कीमती है?
मुझे सपनो का ताना -बाना
बुनना है....
बुन कर अपने परिवार को
पहनाना है .....
मुझे बहुत ऊपर और बहुत ऊपर ,
जाना है जहाँ से
मैं अपने लोगों को भी
न पहचान सकूँ ......
अब तुम क्यों मुझे
पीपल, महुए और आम की
मदमाती पुरवाई लेकर
मेरा रास्ता रोके हो ?
देखो,
पूनम की धपधपाती चांदनी में
चाँदी की चादर ओढ़े ताल उदास होकर
सिमट रह है
नहर की पुलिया पर
अब सुंदर छबीले ठहाके कहाँ?
वहां शराब की धुन पर
राजनीति ट्विस्ट कर रही है ......
बैलों की घंटियों से
सजी वो सांझ कहाँ????
ये तो मल्टीनेशनल कंपनियों
के कभी न डूबने वाली
सूरज की उपास है.......