राह कितनी भी कठिन हो ,
मन में कोलाहल मचा हो ,
मार्ग में अतिरेक संकट ,
जो विधाता ने रचा हो ,
कंटकों की हो डगर ,
चुभते रहे हो शूल हर पल |
हे पथिक ,चलता चला चल...................
हे पथिक ...............................
जो कभी विश्राम न ले ,
जितने की छह जिसमें
हर तरह की वेदना को
पी सके हो प्यास जिसमे
राह की बाधा समेटे ,
आज तू आगे निकल चल |
हे पथिक चलता चला चल.......
हे पथिक ..............................
देख कर मंजिल न समझो ,
राह पूरी हो गयी है
पथ ख़त्म होते ही तेरी
चाह पूरी हो गयी है
चीर कर पर्वत नदी बन
लक्ष्य से आगे निकल चल
हे पथिक चलता चला चल ....
हे पथिक .......................
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