पीपल के पेड़ टेल कूक रही कजली की,
नभ पे जो खेल रही प्यासी उस बदली की |
देहयष्टि देख रही स्वप्निल उन आँखों की,
कलियोंपर दौड़ रही तितली के पांखों की,
पनघट पे रीत रहे कजरारे नयनो की,
स्नेह्रस पागे उन दादी के बैनों की...........
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