लिखना चाहती हूँ गीत ,
पर भावनाए हर बार ,
लड़ बैठती हैं आपस में,
सुख चाहता है उसे लिखा जाय
दुःख चाहता है उसे,
कोरा रह जाता है कागज,
तड़पती रह जाती है कलम ,
लिखने का सा अभिनय लिए ,
रुक जाता है हाथ .....
सुख दुःख के इस द्वन्द में,
नहीं कर पा रही हूँ निर्णय,
किसे लिखूं
क्योंकि अनिवार्य है दोनों
,
जीवन में,
बिना दुःख के सुख की
अनुभूति नहीं
महत्व है दोनों का बराबर ,
दुःख देता है शक्ति लड़ने की
सुख कहता है जो लडेगा ,
वो मुझे पायेगा ...
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