पीपल के पेड़ तले गुजरा हुआ बचपन ,
स्मृतियाँ थक जाती हैं सपनो के बोझ से ,
अतीत वर्तमान मैं खीचा चला आता है..
द्वारे के नीम तले खटिया पे बैठे ,
फिरतु और हरजू का दुःख सुख ,
बँट जाता है......
दादी केकिस्सों मैं रचा बसा मेरा मन
शहरों के डिस्को से ऊब- ऊब
जाता है.........
अब तो ये सब गुमनाम हुआ गाँव से,
पीपल का ठूंठ खड़ा
आज भी बुलाता है............................
द्वारे के नीम तले खटिया पे बैठे ,
फिरतु और हरजू का दुःख सुख ,
बँट जाता है......
दादी केकिस्सों मैं रचा बसा मेरा मन
शहरों के डिस्को से ऊब- ऊब
जाता है.........
अब तो ये सब गुमनाम हुआ गाँव से,
पीपल का ठूंठ खड़ा
आज भी बुलाता है............................
parivatan hai yadi jidagi hai toh ham badhthe jate hain!!
ReplyDeletelakin mujhe to sede -sche poorve bhav hei bhathe hain
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता है …
ReplyDeleteऔर गीत भी सुना - "एक प्यारा-सा गांव , जिसमें पीपल की छांव…"
स्वर राजेन्द्र जी मेहता और नीना जी मेहता के हैं न ? बहुत मार्मिक है गीत … !
आभार सहित बधाई !