Monday, July 22, 2013

गुरु पूर्णिमा – अंधकार से प्रकाश की ओर ..


गुरु ब्रह्मागुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरगुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.

उक्त वाक्य उस गुरु की महिमा का बखान करते हैं जो हमारे जीवन को सही राह पर ले जाते हैं. गुरु के बिना यह जीवन बहुत अधूरा है. यूं तो हम इस समाज का हिस्सा हैं ही लेकिन हमें इस समाज के लायक बनाता है गुरु. शिक्षक दिवस के रूप में हम अपने शिक्षक को तो एक दिन देते हैं लेकिन गुरु जो ना सिर्फ शिक्षक होता है बल्कि हमें जीवन के हर मोड़ पर राह दिखाने वाला शख्स होता है उसको समर्पित है आज का दिन गुरु पूर्णिमा.

वेद व्यास की जयंती : गुरु पूर्णिमा जगत गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है. माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था. वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी. वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था. उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है. ऐसे जगत गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है.
बुद्ध ने दिया था प्रथम उपदेश : बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के पांच सप्ताह बाद भगवान बुद्ध ने सारनाथ पहुंच आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था. इसे बौद्ध ग्रंथों में ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहा जाता है. बौद्ध धर्मावलंबी इसी गुरु-शिष्य परंपरा के तहत गुरु पूर्णिमा मनाते हैं.
 गुरुपूर्णिमा का महत्व
गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा. गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती. जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है. पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है. इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए.. गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है. गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है.

गुरु का दर्जा भगवान के बराबर माना जाता है क्योंकि गुरु, व्यक्ति और सर्वशक्तिमान के बीच एक कड़ी का काम करता है. संस्कृत के शब्द गु का अर्थ है अन्धकार, रु का अर्थ है उस अंधकार को मिटाने वाला.

आत्मबल को जगाने का काम गुरु ही करता है. गुरु अपने आत्मबल द्वारा शिष्य में ऐसी प्रेरणाएं भरता है, जिससे कि वह अच्छे मार्ग पर चल सके. साधना मार्ग के अवरोधों एवं विघ्नों के निवारण में गुरु का असाधारण योगदान है. गुरु शिष्य को अंत: शक्ति से ही परिचित नहीं कराता, बल्कि उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है.
कहा गया है...
"गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लगे पाय ,
बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय.." अर्थात गुरु की महिमासे कौन इंकारकर सकता है ..