Saturday, May 24, 2014

आधुनिक एकलव्य ....

एक बार एकलव्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए कोचिंग क्लास की तलाश में थे। तभी उन्होंने एक नेम प्लेट लगी देखी --डॉक्टर द्रोणाचार्य ,धनुर्विद विशारद, पी. एच. डी.... एकलव्य ने डोर बेल बजाया ,एक वृद्ध ने ऐनक सँभालते हुए दरवाजा खोला ..
एकलव्य बोले ,गुड मॉर्निंग सर !
द्रोण - कहो क्या बात है ?
एकलव्य -सर ,आय ऍम एकलव्य ,सन ऑफ़ हिरन्यधेनु, मैं आपसे टूशन पढना  चाहता हूँ। 
सुन कर द्रोण बोले ,"माय चाइल्ड ,मैं ठहरा सरकारी नौकर ,मैं मंत्रियों और अफसरों के बच्चों को ही सिर्फ पढ़ता हूँ यानि तीरंदाजी सिखाता हूँ। प्लीज़ ,सॉरी तुम कोई और कोचिंग क्लास ज्वाइन कर लो "

एकलव्य लौट पड़ा। तभी उसके दिमाग में बिजली कौंधी,उसने प्रो .द्रोण को अर्जुन स्टूडियो में देखा था वह तुरंत स्टूडियो पहुंचा। प्रो.की पासपोर्ट साइज़ फोटो मांगी क्योंकि वह सिर्फ ५ रुपये की थी ,और बंगले के लान में  उसने फोटो चिपका दी और धनुर्विद्या की प्रैक्टिस करने लगा। 
एक बार गुरु द्रोण ने स्टूडेंट्स के साथ पिकनिक का प्रोग्राम बनाया ,वो सभी एकलव्य के बंगले सामने वाले बगीचे में  थे। एकलव्य को देख कर प्रो द्रोण का पामेरियन कुत्ता भौंका ,एकलव्य ने अपनी धनुर्विद्या का परिचय देते हुए कुत्ते का मुह बंद कर दिया प्रो द्रोण सहित सारे स्टूडेंट्स वहां पहुंचे। प्रो द्रोण  को देख कर एकलव्य बोले ,"गुड आफ्टर नून सर !,यह सब आपके टीचिंग का कमाल है। "प्रो. द्रोण बोले, " मेरी टूशन फीस दोगे ?"प्रो. द्रोण के कहने पर एकलव्य अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटने को तैयार हो गया। तभी प्रो द्रोण बोले पहले इस पेपर पर साइन करो कि किसी के दबाव में न आकर अपना अंगूठा दिया है और प्रॉमिस करो की भविष्य मे  कभी भी प्लास्टिक सर्जरी नहीं करवाओगे। "एकलव्य ने साइन कर दिया,और अंगूठा काट कर दे दिया ..
अगले  माह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर का पद रिक्त हुआ। अर्जुन और एकलव्य दोनों ही इस पद के दावेदार थे। प्रो. द्रोण को विदित था कि अर्जुन को ही ये पद मिलेगा। अगले दिन रिजल्ट बना। कुलपति ने अनाउंस किया ,"मि. एकलव्य और मि. अर्जुन का परफॉरमेंस सेम रहा किन्तु हमारी यूनिवर्सिटी अनुसूचित जाति  और अपंगों को प्रोत्साहन दे रही है ,अतः यह पोस्ट मि एकलव्य को दी जा रही है क्योंकि वह दोनों कटैगरी मैं फिट आते हैं.। कॉंग्राटुलशंस !!!!!
आज भी अर्जुन और एकलव्य की प्रतिस्पर्धा जारी है.... 


Thursday, May 22, 2014

विगलित पुष्प ...

बचपन मे धर्मवीर भारती द्वारा प्रकाशित "धर्मयुग "में एक कविता पढ़ी थी ..यह कविता उस समय प्रकाशित हुई थी जब महानायक अमिताभ बच्चन जी" कुली " फिल्म की शूटिंग करते समय घायल हुए थे और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे ....
उनकी ही शायद कोई एक कविता थी ,'The withered  flower' 
जिसका अनुवाद हिंदी में उनके पिता श्री हरिवंशराय बच्चन ने किया था .. पहले कविता की कुछ ही पंक्तिया याद थी मुझे ,पर अभी मैं अपने बड़े भाई  से मिलने वाराणसी गयी थी उनसे  पूछ कर कुछ और पंक्तियाँ संगृहीत  किया ..अभी भी नहीं पता की ये पूरी हैं या नहीं ..
कविता कुछ इस प्रकार थी..

अन्धकार में मंद हवा का एक झकोरा ,
एक नदी की शिथिल धार है मेरा मन ,
मेरी पीड़ा विगलित विचार,
मेरी शंकाएं,
गलित पुष्प सी ,
जल के तल पे ,
अनायास बहती जाती हैं धीरे धीरे ,
वह करती हैं प्यार 
मुझे करती आई हैं 
और करेंगी ;
किन्तु चमत्कृत करने वाले 
मुझे तीन क्षण
एक त्रिभुज के तीन बिंदु से 
तीन दिशा में चिटक गए हैं ;
एक दुसरे से सामान अंतर पर
मेरा मन अशांत ,विक्रांत,भ्रांत हो 
उस त्रिकोण के अन्दर अन्दर
एक बिंदु को केंद्र बनाकर 
घूम रहा है ;
कभी एक रेखा छूता है 
कभी दूसरी, कभी तीसरी ;
दौड़ बिंदु से बिंदु बिंदु तलक 
अविरत जारी है ;
पल रुकने को कहीं नहीं ,कहीं नहीं 
कहीं नहीं रे,
अन्धकार फिर घिर आता है 
आंसू से बोझल बदल का टुकड़ा 
धीरे धीरे तिरता
 करता है संकेत विदा का ;
हवा बही जाती है, नदी चली जाती है 
गलित पुष्प 
बहता बहता 
खोजता किनारा ;
तट से टकरा कर 
पल भर को 
थम जाता है.........

आप सबसे अनुरोध है अगर ये कविता कहीं मिले तो जरूर पोस्ट करे।