Monday, November 3, 2014

A Short Trip of Kanheri Caves...



  • Sunday morning, along with near and dear ones ,we started our trip for kanheri caves .Around 8am we started from our place narul.,navi mumbai..
  • One of the airiest places in the city, the Kanheri Caves premises offers a pleasant break from the pollution and the noisy, metropolitan life. Nestled in the Sanjay Gandhi National Park at Borivali, the Kanheri Caves are also known as the 'lungs of Mumbai', because this is the only place in the city with the maximum amount of greenery and consequently, a lot of fresh air. 
  • The caves date back to 1st century BC and are believed to be one of the oldest cave formations of the country. The Kanheri Caves are renowned for their natural Basalt formations, ancient Indian styled architecture and the 109 special entrances to the caves. 
  • The word Kanheri originates from the Sanskrit term 'Krishnagiri'. Each cave here, unlike the other caves in the country, is adorned with a 'splinth' or a rock bed. Congregation halls with large stupas also indicate that the caves were Buddhist shrines and a focal point during the Buddhist settlement in the 3rd century. The Kanheri Caves became a distinctive Buddhist institution for congregational worship, study and meditation.
  • When one visits the Kanheri Caves, there is a lot to see, in terms of what the caves have to offer and even around the caves. There are about 34 unfinished paintings of Buddha within the Caves. Apart from the paintings, one should also visit the 'Vihara' (prayer hall) and the different monasteries around the cave for a glimpse of former Buddhist occupation and life
  •  The hilly terrain of the caves also creates several, small waterfalls which are beautiful to see. Natural streams and rivers around the Kanheri Caves offer stunning views and beautiful locations for families to enjoy a small picnic while visiting the caves.
  • Sanjay Gandhi National Park, with vivid treasury of wildlife, beautifully green landscape, well laid zigzag roads and kind-hearted monkey band is another plus point for making the place such a hotspot for the tourist folk.
  •  The caves represent a golden beginning and the end of Buddhism in Northern India.
(Information compiled from Internet..)



Sunday, June 15, 2014

पितृत्व की गोद में......

सबसे पहले परमपिता इश्वर के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ जो मैं इस परिवार का अंग रही हूँ..
 
पिता की क्या परिभाषा दूं.?.यह एक ऐसा भाव है जिसमे कभी कोई दोष या कमी नज़र ही नहीं आती..यह एक ऐसा रिश्ता है जिससे हम ऋण मुक्त हो ही नहीं सकते.। बचपन का आरंभ  ही पिता के संस्कृत श्लोकों से या रामायण की पंक्तियों से होती है. .सुबह उठाने का ये उनका अद्भुत अंदाज़ था ..


दींन दयाल विरद संहारी, हरहु नाथ मम सकटसंकट भारी।

क वन सो काज  कठिन जग माहि,जो नहीं होइ तात  तुम पाहीं।
राम काज लग तव अवतारा ,सुनतहि भयउ पर्वतकारा।
या फिर:
समुद्र वसने देवी,
पर्वता सताना मंडले.
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं,
पादा स्पर्षम क्षमस्व में।


सुबह हो या शाम जितना योगदान माँ का है हमे रचने में  उतना ही पिता का रहा है। माँ ने अगर सुन्दर सीख दी तो पिता ने उन्हें व्यवहारिकता का लिबास से सजाया और संसार में  निडर हो कर सामना करना सिखाया। जौनपुर में नए पुल  का निर्माण हो या गोमती नदी में नौका विहार या मंदिर का वो प्रांगण सब कुछ का अमूल्य योगदान रहा है हमे ज़िन्दगी के गुर सिखाने मे, कभी बनारस का मानस मंदिर हो या इलाहाबाद का आनंद भवन सब कुछ हमारे सामान्य ज्ञान को बढ़ाते रहे। क़िताबों मे  रट कर याद करना मुश्किल लगता था पर प्रत्यक्ष दर्शन स्मरण शक्ति को दृढ़ता प्रदान करता रहा। . इतना ही नही कभी राजनेताओं का भाषण हो या रैली हर जगह हमे लेके जाते थे। कभी संजय गांधी,इंदिराजी ,राजीव जी या अटल जी सबसे रूबरू करवाया और जिसके पीछे मकसद था देश के सामयिक घटनाओं से परिचित कराना था...


ये सब तो रही ज्ञानवर्धक बाते ,आम ज़िन्दगी के सबक भी साथ चलते रहते थे ,अपने संघर्ष की बाते बता कर ज़िन्दगी कड़वी और मीठी सच्चाई से अवगत करना भी अपने आप मैं प्रेरणादायक रहा। कब बचपन की चचंलता से यौवन के दहलीज़ पे कदम रखा जहाँ कड़वे  अनुभवो के बाद भी हिम्मत नहीं हारी क्योंकि अब तक उनकी माँ उनकी प्रेरणा बन चुकी थी. ।गांधी आश्रम के  एक साधारण से कर्मचारी से जीवन का आरम्भ करते हुए एक प्रतिष्ठित व्यापारी तक का सफर, बिना किसी पूँजी के , तय करना आसान नहीं था फिर भी हमे कभी महसूस नहीं होने दिया कि कब तंगी का दौर रहा। .
गीता का उपदेश समय समय पर एक ऊर्जा का संचार करता था ,उस समय बोर लगता था ,पर जब भी ज़िन्दगी की राहों पर विचलित हुए पिताजी की वही बाते याद आती एक सच्चे कर्मयोगी की तरह फिर ऊर्जा का संचार होता था।
कभी अगर फिल्म भी साथ दिखने ले जाते तो वहां से आने पर भी हर एक दृश्य और हर  अभिनय पर चर्चा करना हम सब की आदत हो गयी थी। इतना  ही नहीं व्यस्तता और उनके भी दिनचर्या को एक कभी कभी विराम देना जरूरी समझते थे कभी कभी रविवार को अपनी पाक कला का परिचय भी देते थे। एक पसंदीदा व्यंजन दो प्याजा याद आता है. .
 हम भाई बहनो को सुबह स्कूल के लिए तैयार करना और साईकिल से स्कूल छोड़ना उनकी दिनचर्या होती थी।
हर इंसान छोटा या बड़ा किसी भी जाति या धर्म का हो सबसे ही कुछ न कुछ सीखते थे और हमे भी प्रेरित करते। मंदिर का भंडारा हो या गुरु का लंगर हमे सबसे परिचित करते। .चर्च  के फादर हो या मौलवी सब से हमे मिलवाते। आज भी मौलवी जी का सबक..भुला नहीं सकते..

"मैं सो जाऊं  या मुस्तफा कहते कहते ,
खुले आँख सल्ले अल्लाह कहते कहते..."


गुरुबानी भी ..
जो मागहि ठाकुर अपुने ते सोई सोई देवै ॥
नानक दासु मुख ते जो बोलै ईहा ऊहा सचु होवै ॥
 
 बचपन में  poem  जो पहली yaad karayi..
All things bright and beautiful ,all creatures great and small ;
all things wise and wonderful ,the good god made them all.

इतना ही नहीं पिताजी ने यार दोस्तों को भी हमेशा महत्व दिया।अपनी  मंडली के साथ यदा कदा घूमने जाते रहना।  धर्म में आस्था रही है परन्तु . अन्धविशवश से कोसो दूर फक्कड़ प्रवृति के इंसान रहे हैं। आज भी उम्र के इस पड़ाव पर भी कठिन श्रम कर रहे हैं जो हमे अभी भी प्रेरणा दे रही है… पिता जी का प्रिय quotation ..रहा है..
"Arise ,awake and stop not till the goal is reached "
--Swami Vivekanand

कितनी बातें याद करे पर ये यादों के पन्ने अनगिनत हैं.
आदरणीय पिता जी ,न सिर्फ आज बल्कि पूरी ज़िन्दगी हम आपके ऋणी रहेंगे और ईश्वर के आभारी हैं की उन्होंने हमे आपकी संतान बनाया ..आप पर गर्व है हम सब को ...शब्दों की कमी हमेशा रहेगी ..आपके अद्भुत व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना। । ईश्वर आपकोऔर अम्मा को स्वस्थ रखे बस यही प्राथना करती हूँ !!!




Wednesday, June 11, 2014

Every Horse Thinks His Own Pack Is The Heaviest..




  • Animals and beasts too hav feelings,though they may hav not any language.
  • If a load on a horse or a donkey is too heavy,he just grunts or halts in his movement.
  • But Thomas Fuller was not only refering horses,the meaning is wider...
  • Every human being feels that the worries,workload,and responsibilities he carries are much more heavier than those of others.
  • Such is human nature.we are all to magnify our ailments,work and problems,and also those of others.Whenever some additional is sought to be put on us,we do owe our best toget it shifted to others.
  • On the other hands we tend to regard our own perks as less as those of otheres,so we constantly demand more..,'less work and more pay'seems to have become everyone's handy slogan.
  • Basically we dislike and shirk,we are a nation of shirkers,not of doers.India would undergo a salient but fateful tranformation,if all of us become active and shed all our laziness that has brought much discredit.
A good heart can win many relationships;
A good nature can win many good hearts!
Hv A GooD DaY!


Saturday, May 24, 2014

आधुनिक एकलव्य ....

एक बार एकलव्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए कोचिंग क्लास की तलाश में थे। तभी उन्होंने एक नेम प्लेट लगी देखी --डॉक्टर द्रोणाचार्य ,धनुर्विद विशारद, पी. एच. डी.... एकलव्य ने डोर बेल बजाया ,एक वृद्ध ने ऐनक सँभालते हुए दरवाजा खोला ..
एकलव्य बोले ,गुड मॉर्निंग सर !
द्रोण - कहो क्या बात है ?
एकलव्य -सर ,आय ऍम एकलव्य ,सन ऑफ़ हिरन्यधेनु, मैं आपसे टूशन पढना  चाहता हूँ। 
सुन कर द्रोण बोले ,"माय चाइल्ड ,मैं ठहरा सरकारी नौकर ,मैं मंत्रियों और अफसरों के बच्चों को ही सिर्फ पढ़ता हूँ यानि तीरंदाजी सिखाता हूँ। प्लीज़ ,सॉरी तुम कोई और कोचिंग क्लास ज्वाइन कर लो "

एकलव्य लौट पड़ा। तभी उसके दिमाग में बिजली कौंधी,उसने प्रो .द्रोण को अर्जुन स्टूडियो में देखा था वह तुरंत स्टूडियो पहुंचा। प्रो.की पासपोर्ट साइज़ फोटो मांगी क्योंकि वह सिर्फ ५ रुपये की थी ,और बंगले के लान में  उसने फोटो चिपका दी और धनुर्विद्या की प्रैक्टिस करने लगा। 
एक बार गुरु द्रोण ने स्टूडेंट्स के साथ पिकनिक का प्रोग्राम बनाया ,वो सभी एकलव्य के बंगले सामने वाले बगीचे में  थे। एकलव्य को देख कर प्रो द्रोण का पामेरियन कुत्ता भौंका ,एकलव्य ने अपनी धनुर्विद्या का परिचय देते हुए कुत्ते का मुह बंद कर दिया प्रो द्रोण सहित सारे स्टूडेंट्स वहां पहुंचे। प्रो द्रोण  को देख कर एकलव्य बोले ,"गुड आफ्टर नून सर !,यह सब आपके टीचिंग का कमाल है। "प्रो. द्रोण बोले, " मेरी टूशन फीस दोगे ?"प्रो. द्रोण के कहने पर एकलव्य अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटने को तैयार हो गया। तभी प्रो द्रोण बोले पहले इस पेपर पर साइन करो कि किसी के दबाव में न आकर अपना अंगूठा दिया है और प्रॉमिस करो की भविष्य मे  कभी भी प्लास्टिक सर्जरी नहीं करवाओगे। "एकलव्य ने साइन कर दिया,और अंगूठा काट कर दे दिया ..
अगले  माह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर का पद रिक्त हुआ। अर्जुन और एकलव्य दोनों ही इस पद के दावेदार थे। प्रो. द्रोण को विदित था कि अर्जुन को ही ये पद मिलेगा। अगले दिन रिजल्ट बना। कुलपति ने अनाउंस किया ,"मि. एकलव्य और मि. अर्जुन का परफॉरमेंस सेम रहा किन्तु हमारी यूनिवर्सिटी अनुसूचित जाति  और अपंगों को प्रोत्साहन दे रही है ,अतः यह पोस्ट मि एकलव्य को दी जा रही है क्योंकि वह दोनों कटैगरी मैं फिट आते हैं.। कॉंग्राटुलशंस !!!!!
आज भी अर्जुन और एकलव्य की प्रतिस्पर्धा जारी है.... 


Thursday, May 22, 2014

विगलित पुष्प ...

बचपन मे धर्मवीर भारती द्वारा प्रकाशित "धर्मयुग "में एक कविता पढ़ी थी ..यह कविता उस समय प्रकाशित हुई थी जब महानायक अमिताभ बच्चन जी" कुली " फिल्म की शूटिंग करते समय घायल हुए थे और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे ....
उनकी ही शायद कोई एक कविता थी ,'The withered  flower' 
जिसका अनुवाद हिंदी में उनके पिता श्री हरिवंशराय बच्चन ने किया था .. पहले कविता की कुछ ही पंक्तिया याद थी मुझे ,पर अभी मैं अपने बड़े भाई  से मिलने वाराणसी गयी थी उनसे  पूछ कर कुछ और पंक्तियाँ संगृहीत  किया ..अभी भी नहीं पता की ये पूरी हैं या नहीं ..
कविता कुछ इस प्रकार थी..

अन्धकार में मंद हवा का एक झकोरा ,
एक नदी की शिथिल धार है मेरा मन ,
मेरी पीड़ा विगलित विचार,
मेरी शंकाएं,
गलित पुष्प सी ,
जल के तल पे ,
अनायास बहती जाती हैं धीरे धीरे ,
वह करती हैं प्यार 
मुझे करती आई हैं 
और करेंगी ;
किन्तु चमत्कृत करने वाले 
मुझे तीन क्षण
एक त्रिभुज के तीन बिंदु से 
तीन दिशा में चिटक गए हैं ;
एक दुसरे से सामान अंतर पर
मेरा मन अशांत ,विक्रांत,भ्रांत हो 
उस त्रिकोण के अन्दर अन्दर
एक बिंदु को केंद्र बनाकर 
घूम रहा है ;
कभी एक रेखा छूता है 
कभी दूसरी, कभी तीसरी ;
दौड़ बिंदु से बिंदु बिंदु तलक 
अविरत जारी है ;
पल रुकने को कहीं नहीं ,कहीं नहीं 
कहीं नहीं रे,
अन्धकार फिर घिर आता है 
आंसू से बोझल बदल का टुकड़ा 
धीरे धीरे तिरता
 करता है संकेत विदा का ;
हवा बही जाती है, नदी चली जाती है 
गलित पुष्प 
बहता बहता 
खोजता किनारा ;
तट से टकरा कर 
पल भर को 
थम जाता है.........

आप सबसे अनुरोध है अगर ये कविता कहीं मिले तो जरूर पोस्ट करे। 

Monday, March 17, 2014

होली...यादों के झरोखे से ..

आज बडे भाई का अमूल्य होली सन्देश आप सब के साथ शेयर करना चाहती हूँ:-
फागुन का मेरे दिल से सम्बन्ध पुराना है,
मारा नहीं है फाग प्राण में  बारह आना है ;
मह मह  हाट लगाती पछुआ ,
फुनगी पे अमराई की ,
बौर महकते हैं ज्यों मादक देह गंध तरुणाई की !
मन निर्वस्त्र पलाश सा ,तोड़ रहा सम्बन्ध ;
पीपल रेशम ओढ़ के,बांचे फागुन छंद !
सदा अनंद रहे हर द्वारे ,कान्हा खेले फाग ;
हर मन में  हुलसा करे फागुन  सा  अनुराग। 

बचपन एक बार फिर होली के झरोखे से झाँकने लगा ..जब छोटे थे तो मां ने होलिका और प्रह्लाद की कहानी सुनाती थी ..थोडा बड़े हुए तो भाई बहन पिचकारी लेके एक दुसरे पे रंग डालने लगते थे .
फिर सड़क पर होली की टोलियाँ गाने गाती निकलती थी..सब अच्छा लगता था ..हम लोगगों का घर किसी मोहल्ले मैं था नहीं इसलिए पास पड़ोस की रौनक से अनभिज्ञ थे..
घर के आसपास बाज़ार होने की वजह से होली के हुडदंग कुछ अलग ही अंदाज़ में  देखने को मिलता था , होलिका दहन के दिन होली की टोली घर घर घूम के चंदा वसूल करते थे और रात को कहीं होली जला दी जाती थी ..कभी जलते देखा ही नहीं होली..
सुबह के समय बच्चे जवान सब रंग भरी बाल्टी और पिचकारी लेके आते जाते सबको रंग से नहलाते थे .अगर किसी को नहीं पसंद उसे भी जबरदस्त तरीके से पकड़ कर रंग से नहला देते थे..लोगों का सदक्पर चलना मुश्किल हो जाता था चाहे कोई बचा हो या वृद्ध या कोई महिला कोई भी नहीं बच पाता था..मन में अजीब सा डर कब बैठ गया रंगों से, पता ही नहीं चला ..एक ही सवाल उठता था होली के नाम पे जबरदस्ती क्या जरूरी है?
जवाब यही मिलता "बुरा न मानो होली है "..
पर आज तक वो रंगों का डर मन से पूरी तरह से निकल नहीं पायी हूँ..होली जैसा त्यौहार जो अद्भुत सन्देश लाता है मेरे मन से रंगों का भय नहीं निकल पाया ..
हर साल होली जब आती तो यही मन होता कब रंग वाली जबरदस्ती की होली ख़त्म होगी ..पर होली की शाम का बेसब्री से इंतज़ार होता था ..हम भाई बहन शाम को नए कपडे पहन कर तैयार होकर पिताजी के साथ मंदिर जाते थे ..वहां का दृश्य अद्भुत होता था ..मंदिर के पुजारी एक वृद्ध और और एक  सूरदास जी थे...वृद्ध पुजारी जी होली के गीत सुनते और सूरदास जी हमोनियम बजाते ..आज भी वो बोल याद आते हैं..

होली खेलत रघुवीरा अवध में,होली खेलत  रघुवीरा ;
राम के हाथ कनक पिचकारी ,लछमन हाथ अबीरा..
फिर हम बच्चे मिलकर सुन्दरकाण्ड रामायण पढ़ते थे ..फिर ठंडाई बनती थी मंदिर प्रांगण में जिसे हम बड़े मज़े से पीते थे
खट्टी मीठी यादें कहीं न कहीं दिल को आज भी झकझोरती ही हैं.आज  भी अनजाने में अपने द्वारा किया दुर्व्यवहार दिल को दर्द देता है। 
फिर भी अतीत कि गलतियां आगे सुधरने का अवसर भी तो देती हैं। . 
आइये इस शुभकामनाओं के साथ.....
पिचकारी की धार ,
गुलाल कि बौछार ,
 अपनों का प्यार ,
यही है यारों होली का त्यौहार 
होली की  हार्दिक बधाई !!! 

Wednesday, February 19, 2014

A Visit To Talwandi Sabo...

Long awaited opportunity accorded byAlmighty .We went to Talwandi Sabo with friends and were blessed with Prasad in the langar .It was one and half hour journey from  Bathinda.

  Sharing some important facts about this holy place.
  • Talwandi Sabo is also known as The Takht Sri Darbar Sahib Damdama Sahib..
  • The other four Takhts are the Akal TakhtTakht Sri Keshgarh Sahib,Takht Sri Patna Sahib and Takht Sri Hazur Sahib.
  • Damdama meansbreathing placeGuru Gobind Singh stayed here after the Sikhs fought several defensive battles
  • Takht Sri Damdama Sahib is in Bathinda in PunjabIndia .
  • This is the place where Guru Gobind Singh, the tenth Sikh Guru, prepared the full version of the Sikh scriptures calledSri Guru Granth Sahib in 1705. .
  • Guru Gobind Singh stayed here after fighting battles against Mughal atrocities. 
  • Before his arrival at Talwandi, two of the Guru’s sons were bricked alive at Sarhind and two laid down their lives at Chamkaur Sahib. After writing Zafarnama, Guru Gobind Singh fought a successful battle at Muktsar and then moved towards Talwandi Sabo .
  • At Damdama Sahib as it is now called, the Guru preached complete sacrifice of personal and family interests at the altar of the good of mankind.
  • Before leaving to visit Sikh Sangats in the Deccan, Guruji blessed Talwandi Sabo, as Guru Ki Kashi. 
  • Now known better as Damdama Sahib after the Gurdwara became one of the four temporal Takhats of the Sikh religion.
  •  Another great Shaheed (Martyr) of Sikhi, Baba Deep Singh ji was installed as the first Jathedar (head) of this temporal seat. 
  • He penned additional copies of the Adi Sri Granth Sahib ji and sent them to the other four temporal seats.
  • This title was given because of the intense literary activities that Guru Gobind Singh engaged in during his stay here (the compilation of Sikh scriptures).
  •  It is said that one day Guru Gobind flung a handful of reed pens over the heads of the congregation ('Sangat'), saying: "Here we will create a pool of literature. No one of my Sikhs should remain illiterate." 
  • The Damdama Wali Bir as the Guru Granth Sahib is sometimes called was completed here, being dictated by the Guru to one of his disciples Bhai Mani Singh
  • It was at this time when the hymns of Guru Tegh Bahadur Sahib, the ninth Guru and father of Guru Gobind Singh were added to the Bir.

 The following. words of the great Guru expressing his firm faith in the Khalsa, are inscribed on a pillar installed by the Punjab Government, 

"To the Khalsa does belong all,
My home, my body, and all I possess"


WAHE GURUJI KA KHALSA WAHE GURU JI FATEH!!!






Sunday, February 2, 2014

सृजन.....


लिखना चाहती हूँ गीत ,
पर भावनाए हर बार ,
लड़ बैठती हैं आपस में,
सुख चाहता है उसे लिखा जाय
दुःख चाहता है उसे,
कोरा रह जाता है कागज,
तड़पती रह जाती है कलम ,
लिखने का सा अभिनय लिए ,
रुक जाता है हाथ .....

सुख दुःख के इस द्वन्द में,
नहीं कर पा रही हूँ निर्णय,
किसे लिखूं
क्योंकि अनिवार्य है दोनों ,
जीवन में,
बिना दुःख के सुख की अनुभूति नहीं
महत्व है दोनों का बराबर ,
दुःख देता है शक्ति लड़ने की
सुख कहता है जो लडेगा ,

वो मुझे पायेगा ...

Unrequited...




I have seen the ocean of love in your eyes,
I have felt the presence of love in your heart,
I can understand, but what I can do my dear,
I am as helpless as you are…

My dreams and thoughts are for someone else,
My love is promised to someone,
But I wish I could put a balm,
To soothe your ailing heart…

Now I can see the longings in your eyes,
I can hear the secret sorrow hidden in your voice,
But I cannot quench your thirst my love!

I am as helpless as you are….,,,