Sunday, September 11, 2011

पीपल के पेड़ तले गुजरा हुआ बचपन ,
बार बार ज़ेहन मैं लौट लौट आता है.                       
स्मृतियाँ थक जाती हैं सपनो के बोझ से ,
अतीत वर्तमान मैं खीचा चला आता है..
द्वारे के नीम तले खटिया पे बैठे ,
फिरतु और हरजू का दुःख सुख ,
बँट जाता है......
दादी केकिस्सों मैं रचा बसा मेरा मन
शहरों के डिस्को  से ऊब- ऊब
जाता है.........
अब तो ये सब गुमनाम  हुआ गाँव से,
पीपल का ठूंठ खड़ा
 आज भी बुलाता है............................


2 comments:

  1. parivatan hai yadi jidagi hai toh ham badhthe jate hain!!
    lakin mujhe to sede -sche poorve bhav hei bhathe hain

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता है …
    और गीत भी सुना - "एक प्यारा-सा गांव , जिसमें पीपल की छांव…"
    स्वर राजेन्द्र जी मेहता और नीना जी मेहता के हैं न ? बहुत मार्मिक है गीत … !

    आभार सहित बधाई !

    ReplyDelete