Thursday, November 10, 2011

वाहे गुरूजी का खालसा ,वाहे गुरूजी की फ़तेह !!!!!!!


(चित्र गूगल से साभार)
गुरुपर्व के साथ ही  एक बार फिर अतीत की गलियारे में चलते हैं | पिताजी के एक मित्र, जिन्हें  हम  प्यार से "सरदारजी" कहते थे याद आते हैं |अच्छी कद काठी ,स्वस्थ शरीर सफ़ेद दाढ़ी, सर पे पगड़ी और जब भी मिलते तो कहते ",सरदारजी' नमस्ते बोलो तो टॉफी  दूंगा....." उनके प्यारे से व्यक्तित्व से अभिभूत होकर हम उनसे टॉफी ले ही लेते थे | गुरुपर्व के दिन पिताजी के साथ  गुरुदारे जाने का काफी उत्साह रहता था ,वहां पहुँच  कर जहाँ भी सरदारजी दिखते जोर से  सरदारजी नमस्ते बोले बिना नहीं  रहते |बदले में उनका खिलखिलाता चेहरा देख के हम खुश हो जाते.|अरदास तो ज्यादा कुछ नहीं समझ पाते पर लंगर का एक अलग ही उत्साह रहता था| अपने हाथों से थाली उठाना ,कड़ा प्रसाद और फिर परसादा   चखना .....ये सब अब अधिक आनंद देते हैं ,जब असली मतलब समझ आता  है|
शाम को सरदारजी के घर भी जाना होता था तब वो गुरु नानक जी  की बाते सुनाते  थे......उनके बच्चों के साथ खेलते थे |कहानी कुछ इस प्रकार थी.......
(चित्र गूगल से साभार )
एक बार गुरूजी अपने शिष्य के साथ एक गाँव गए वहां एक जमींदार और एक गरीब दोनों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया |बाबाजी ने पहले  गरीब का आमंत्रण स्वीकार किया ,जिससे जमींदार ने पूछा,"ये  भेद भाव क्यों?" बाबाजी ने कहा ,"तुम भी अपना खाने का सामान  ले आओ ,दोनों का साथ में खाते हैं " गरीब अपनी रूखी रोटी और अमीर अपना ढेर सा पकवान लाया |
बाबाजी ने एक एक हाथ में दोनों का सामान लिया हाथ में लेके निचोड़ा ,जमींदार के पकवान से खून की धार , गरीब के रोटी से दूध की धार निकली |यह देख कर सब आश्चर्य चकित रह गए |बाबाजी ने स्पष्ट किया," जमींदार अपनी कमाई गरीबों के खून से करता है और गरीब दिन भर पसीना बहा के अपनी कमाई करता है|अब आप लोग फैसला करिए किसकी रोटी स्वादिष्ट है ?"
जमींदार  यह  देख  कर  शर्मिंदा  हो  गया  और  उसने  नेकी  की   राह अपनाई|"
इसी कहानी  को सुनते बचपन बीता,उसके बाद पूर्व पधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी  के निर्मम हत्या के बाद हिन्दू सिख दंगों के दौरान कुछ दिन वो हमारे पास रहे अपने उजड़ते आशियाने को देख कर रो पड़े थे ....हम चाहते हुए भी कुछ न कर सके |अंत में  परन्तु फिर अपने पैत्रक निवास लुधियाना  चले गए एक दिन पता लगा उन्होंने इस लोक को अलविदा कह दिया.......
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May happiness and blessings 
surround you as we join together 
to remember the beloved Sri 
Guru Nanak Dev ji and the 
Beginnings of Sikhism. 
HAPPY GURPURAB TO ALL…!!

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