Monday, October 29, 2012

महर्षि वाल्मीकि.......


पुराणों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। ऋषि मुनि बनने से पूर्व वे एक डाकू थे जिन्हें रत्नाकर नाम से जाना जाता था।

मनुस्मृति के अनुसार वे प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि के भाई थे। उनके बारे में एक और किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही उनको एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया था और बड़े ही प्रेम से उनका लालन-पालन किया। उक्त भीलनी के जीवनयापन का मुख्य साधन दस्यु कर्म का था। जिसे वाल्मीकि ने अपने भरण-पोषण के दौरान अपना लिया था।

जब वाल्मीकि एक तरूण युवा हो गए तब उनका विवाह उसी समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया। विवाह बाद वे कई संतानों के पिता बने और उन्हीं के भरण-पोषण के लिए उन्होंने पाप कर्म को ही अपना जीवन मानकर और भी अधिक घोर पाप करने लगे।

एक बार उन्होंने वन से गुजर रहे साधुओं की मंडली को ही हत्या की धमकी दे दी। साधु के पूछने पर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे यह सब अपने पत्नी और बच्चों के लिए कर रहे है। तब साधु ने उन्हें समझाइश दी और कहा कि जो भी पाप कर्म तुम कर रहे हो, उसका दंड केवल तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा।

तब साधु ने उन्हें कहा कि तुम जाकर अपने परिवार वालों से पूछकर आओ कि क्या वे तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे। इस बात पर जब उनकी पत्नी और बच्चों ने अपनी असहमती प्रदान की और कहा कि हम आपके इस पाप कर्म में भागीदार नहीं बनेंगे। तब वाल्मीकि को अपने द्वार किए गए पाप कर्म पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने साधु मंडली को मुक्त कर दिया।

साधु मंडली से क्षमा मांग कर जब वाल्मीकि लौटने लगे तब साधु ने उन्हें तमसा नदी के तट पर 'राम-राम' नाम जप ही अपने पाप कर्म से मुक्ति का यही मार्ग बताया। लेकिन भूलवश वाल्मीकि राम-राम की जगह 'मरा-मरा' का जप करते हुए तपस्या में लीन हो गए। इसी तपस्या के फलस्वरूप ही वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए और रामायण की महान रचना की। इसलिए उन्हें आदिकवि के नाम से पुकारा गया और यही नाम आगे चलकर 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से अमर हो गए।

ND
अपने डाकू के जीवन के दौरान एक बार उन्होंने देखा कि एक बहेलिए ने सारस पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी जोर-जोर से ‍विलाप कर रही है। उसका मादक विलाप सुन कर वाल्मीकि के मन में करुणा जाग उठी और वे अत्यंत दुखी हो उठे।

उस दुखभरे समय के दौरान उनके मुंह से अचानक ही एक श्र्लोक निकल गया- 'मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।' अर्थात्- अरे बहेलिए, तूने काम मोहित होकर मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है, अब तुझे कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होगी।

इस श्र्लोक के साथ ही वाल्मीकि को एक अलग ही ज्ञान प्राप्ति का अनुभव हुआ तथा उन्होंने 'रामायण' जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना कर दी। जिसे आम भाषा में 'वाल्मीकि रामायण' भी कहा जाता है। इसीलिए वाल्मीकि को प्राचीन भारतीय महर्षि माना जाता हैं।

ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो हमें प्रभु श्रीराम के जीवन काल का परिचय करवाता है। जो उनके सत्यनिष्ठ, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन और अपने माता तथा भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम-वात्सल्य से रूबरू करवा कर सत्य और न्याय धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

ऐसे महान संत और आदिकवि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

No comments:

Post a Comment