Thursday, February 7, 2013

वसन्तोत्सव ...

वसंत ऋतु में पंच तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच तत्व जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है, तो जल पीयूष के समान सुखदाता। और धरती? उसका तो कहना ही क्या! वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली होती है। 
ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूँढ़ते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहाँ प्रकृति के नव सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। 

बारह राशियों में सूर्य या पृथ्वी के घूमने में लगने वाले बारह महीनों को दो-दो मासों के वर्गों में बाँटकर 6 ऋतु की कल्पना बड़े व्यावहारिक तरीके से भारत में की गई है। इनमें वसंत ऋतु को सबका राजा 'ऋतुराज' कहा गया है। 


कामसखा वसंत 



कथा है कि अंधकासुर का वध करने के लिए देवों की योजना के अनुसार जब भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की दरकार आन पड़ी थी तो सवाल उठा कि शिव पुत्र कैसे पैदा हो? इसके लिए शिवजी को कौन तैयार करे? तब कामदेव के कहने पर ब्रम्हाजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था। 

ऋतुराज वसंत नाम क्यों है? 

इसी दौरान नया संवत्‌ शुरू होने से नए साल के पहले त्योहार इसमें बसे रहने के कारण इसे वसंत कहा जाता है। फसल तैयार रहने से उल्लास और खुशी का आलम रहता है। मंगल कार्य, विवाह आदि भी इस दौरान होते हैं। सुहाना मौसम, फूलों की बहुतायत, तैयार खेती, मतवाला माहौल, आम पर बौर, खिलते कमल, सर्दी का जाता हड़कंप, सुहानी शाम आदि सब इसे ऋतुराज बनाते हैं।


बसंत पंचमी पर सरस्वती का अवतीर्ण

संपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजायुक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद पुराण में सरस्वती जटाजुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौभ्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है।

बसंत पंचमी के पर्व को मनाने का एक कारण बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जयंती का होना भी बताया जाता है। कहते हैं कि देवी सरस्वती बसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा के मानस से अवतीर्ण हुई थीं। बसंत के फूल, चंद्रमा व हिम तुषार जैसा उनका रंग था।



अंत में ..
आज मधुदूत निज
गीत गा गया
जागो जागो
जागो सखि वसन्त आ गया, जागो!


No comments:

Post a Comment