Friday, April 26, 2013

एक और यात्रा..भाग २..

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ.....

मेरे सन्दर्भ मे उपरोक्त कथन सच जान पड़ता है,हम निकल पहले जाते हैं लक्ष्य बाद में हमारी मारूति 800 खुद ही निश्चित कर देती है.मेरी तरह वो भी घुमने की शौकीन है।मज़े की बात वो भी धार्मिक जगह जा कर बहुत खुश हो जाती है।इस बार ईश्वर का आदेश हुआ हर की पौड़ी की तरफ...
.
हर की पौड़ी या हरि की पौड़ी भारत के उत्तराखण्ड राज्य की एक धार्मिक नगरी हरिद्वार का एक पवित्र और सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसका भावार्थ है "हरि यानी नारायण के च रण"।
 हिन्दू धार्मिक माँन्यताओं के अनुसार समुद्र मन्थन के बाद जब विश्वकर्माजी अमृत के लिए झगड़ रहे देव-दानवों से बचाकर अमृत ले जा रहे थे तो पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूँदें गिर गई, और वे स्थान धार्मिक महत्व वाले स्थान बन गए। अमृत की बूँदे हरिद्वार में भी गिरी और जहाँ पर वे गिरी थीं वह स्थान हर की पौड़ी था। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यहाँ गंगा के किनारे घंटो बैठे रहने का मन हो रहा था...पुरे भारत का दर्शन एक ही जगह जो हो रहा था.गंगा किनारे जो सुकून मिल रहा था अकथनीय था। समय अभाव था अतः आरती नहीं देख पाए। शयद मां गंगा पुनः दर्शन के लिए प्रेरित कर रही थी...हिंदी फिल्म का एक गाना याद आता है "मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ,न मानो तो बहता पानी ...दोनों हो सोच में भला तो हमारा यानी मानवता का ही होना है..     

No comments:

Post a Comment