Sunday, February 2, 2014

सृजन.....


लिखना चाहती हूँ गीत ,
पर भावनाए हर बार ,
लड़ बैठती हैं आपस में,
सुख चाहता है उसे लिखा जाय
दुःख चाहता है उसे,
कोरा रह जाता है कागज,
तड़पती रह जाती है कलम ,
लिखने का सा अभिनय लिए ,
रुक जाता है हाथ .....

सुख दुःख के इस द्वन्द में,
नहीं कर पा रही हूँ निर्णय,
किसे लिखूं
क्योंकि अनिवार्य है दोनों ,
जीवन में,
बिना दुःख के सुख की अनुभूति नहीं
महत्व है दोनों का बराबर ,
दुःख देता है शक्ति लड़ने की
सुख कहता है जो लडेगा ,

वो मुझे पायेगा ...

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