Sunday, June 15, 2014

पितृत्व की गोद में......

सबसे पहले परमपिता इश्वर के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ जो मैं इस परिवार का अंग रही हूँ..
 
पिता की क्या परिभाषा दूं.?.यह एक ऐसा भाव है जिसमे कभी कोई दोष या कमी नज़र ही नहीं आती..यह एक ऐसा रिश्ता है जिससे हम ऋण मुक्त हो ही नहीं सकते.। बचपन का आरंभ  ही पिता के संस्कृत श्लोकों से या रामायण की पंक्तियों से होती है. .सुबह उठाने का ये उनका अद्भुत अंदाज़ था ..


दींन दयाल विरद संहारी, हरहु नाथ मम सकटसंकट भारी।

क वन सो काज  कठिन जग माहि,जो नहीं होइ तात  तुम पाहीं।
राम काज लग तव अवतारा ,सुनतहि भयउ पर्वतकारा।
या फिर:
समुद्र वसने देवी,
पर्वता सताना मंडले.
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं,
पादा स्पर्षम क्षमस्व में।


सुबह हो या शाम जितना योगदान माँ का है हमे रचने में  उतना ही पिता का रहा है। माँ ने अगर सुन्दर सीख दी तो पिता ने उन्हें व्यवहारिकता का लिबास से सजाया और संसार में  निडर हो कर सामना करना सिखाया। जौनपुर में नए पुल  का निर्माण हो या गोमती नदी में नौका विहार या मंदिर का वो प्रांगण सब कुछ का अमूल्य योगदान रहा है हमे ज़िन्दगी के गुर सिखाने मे, कभी बनारस का मानस मंदिर हो या इलाहाबाद का आनंद भवन सब कुछ हमारे सामान्य ज्ञान को बढ़ाते रहे। क़िताबों मे  रट कर याद करना मुश्किल लगता था पर प्रत्यक्ष दर्शन स्मरण शक्ति को दृढ़ता प्रदान करता रहा। . इतना ही नही कभी राजनेताओं का भाषण हो या रैली हर जगह हमे लेके जाते थे। कभी संजय गांधी,इंदिराजी ,राजीव जी या अटल जी सबसे रूबरू करवाया और जिसके पीछे मकसद था देश के सामयिक घटनाओं से परिचित कराना था...


ये सब तो रही ज्ञानवर्धक बाते ,आम ज़िन्दगी के सबक भी साथ चलते रहते थे ,अपने संघर्ष की बाते बता कर ज़िन्दगी कड़वी और मीठी सच्चाई से अवगत करना भी अपने आप मैं प्रेरणादायक रहा। कब बचपन की चचंलता से यौवन के दहलीज़ पे कदम रखा जहाँ कड़वे  अनुभवो के बाद भी हिम्मत नहीं हारी क्योंकि अब तक उनकी माँ उनकी प्रेरणा बन चुकी थी. ।गांधी आश्रम के  एक साधारण से कर्मचारी से जीवन का आरम्भ करते हुए एक प्रतिष्ठित व्यापारी तक का सफर, बिना किसी पूँजी के , तय करना आसान नहीं था फिर भी हमे कभी महसूस नहीं होने दिया कि कब तंगी का दौर रहा। .
गीता का उपदेश समय समय पर एक ऊर्जा का संचार करता था ,उस समय बोर लगता था ,पर जब भी ज़िन्दगी की राहों पर विचलित हुए पिताजी की वही बाते याद आती एक सच्चे कर्मयोगी की तरह फिर ऊर्जा का संचार होता था।
कभी अगर फिल्म भी साथ दिखने ले जाते तो वहां से आने पर भी हर एक दृश्य और हर  अभिनय पर चर्चा करना हम सब की आदत हो गयी थी। इतना  ही नहीं व्यस्तता और उनके भी दिनचर्या को एक कभी कभी विराम देना जरूरी समझते थे कभी कभी रविवार को अपनी पाक कला का परिचय भी देते थे। एक पसंदीदा व्यंजन दो प्याजा याद आता है. .
 हम भाई बहनो को सुबह स्कूल के लिए तैयार करना और साईकिल से स्कूल छोड़ना उनकी दिनचर्या होती थी।
हर इंसान छोटा या बड़ा किसी भी जाति या धर्म का हो सबसे ही कुछ न कुछ सीखते थे और हमे भी प्रेरित करते। मंदिर का भंडारा हो या गुरु का लंगर हमे सबसे परिचित करते। .चर्च  के फादर हो या मौलवी सब से हमे मिलवाते। आज भी मौलवी जी का सबक..भुला नहीं सकते..

"मैं सो जाऊं  या मुस्तफा कहते कहते ,
खुले आँख सल्ले अल्लाह कहते कहते..."


गुरुबानी भी ..
जो मागहि ठाकुर अपुने ते सोई सोई देवै ॥
नानक दासु मुख ते जो बोलै ईहा ऊहा सचु होवै ॥
 
 बचपन में  poem  जो पहली yaad karayi..
All things bright and beautiful ,all creatures great and small ;
all things wise and wonderful ,the good god made them all.

इतना ही नहीं पिताजी ने यार दोस्तों को भी हमेशा महत्व दिया।अपनी  मंडली के साथ यदा कदा घूमने जाते रहना।  धर्म में आस्था रही है परन्तु . अन्धविशवश से कोसो दूर फक्कड़ प्रवृति के इंसान रहे हैं। आज भी उम्र के इस पड़ाव पर भी कठिन श्रम कर रहे हैं जो हमे अभी भी प्रेरणा दे रही है… पिता जी का प्रिय quotation ..रहा है..
"Arise ,awake and stop not till the goal is reached "
--Swami Vivekanand

कितनी बातें याद करे पर ये यादों के पन्ने अनगिनत हैं.
आदरणीय पिता जी ,न सिर्फ आज बल्कि पूरी ज़िन्दगी हम आपके ऋणी रहेंगे और ईश्वर के आभारी हैं की उन्होंने हमे आपकी संतान बनाया ..आप पर गर्व है हम सब को ...शब्दों की कमी हमेशा रहेगी ..आपके अद्भुत व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना। । ईश्वर आपकोऔर अम्मा को स्वस्थ रखे बस यही प्राथना करती हूँ !!!




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