Monday, July 30, 2012


 अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

 हिन्दी कविता के विकास में 'हरिऔध' जी की भूमिका नींव के पत्थर के समान है। स्कूल के दिनों में कविता सिर्फ एक याद करने की  होती थी जिसका भावार्थ रट के परीक्षा में  लिखना होता था ......पर अब जैसे ज़िन्दगी  का पाठ्क्रम  सामने आया तो बचपन के पृष्ट अनायास ही सामने आ गए ......निम्नलिखित कविता को बड़ी  मुश्किल से . याद किया था।आज के परिपेक्ष्य में  प्रासंगिक लगती है  .....
एक तिनका 

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। 

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए। 


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