Friday, May 31, 2013

आस्था पे चोट....

 इसे देवी माँ का आशीर्वाद ही समझिये कि चिन्तपुरनी और ज्वालाजी जाने का अवसर एक बार नहीं कई बार मिला। वैसे तो देवस्थान श्रद्धा और विश्वास का स्थान है पर फिर भी एक प्रश्न अक्सर विचलित करता रहता है जब भी इन स्थानों पर जाते हैं। आज सोचा आप सबसे शेयर करे।
एक तरफ हमारे धर्म में कन्या पूजन का अत्यधिक महत्व माना  गया है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। 
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र व शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की परंपरा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। 
कन्या पूजन का मैं  सम्मान करती हूँ पर मंदिरों में कन्याओं का देवी स्वरुप में सजा धजा  के रास्तें में दर्शनार्थियों को रोक रोक के भिक्षा मांगना क्या कन्याओं का अपमान नहीं लगता ?
पता नहीं कैसे धर्म के ठेकेदार या मंदिर ट्रस्ट इसकी इजाजत दे देते हैं? माना की लोग श्रद्धा से ही उन्हें देते हैं ,पर व्यक्तिगत रूप से मुझे ये देवी माँ और उनके स्वरुप कन्याओं का अपमान ही लगता है। कन्या भोज ,कन्या पूजन ये सब अपनी जगह सही है पर इसे रोजगार बना लेना क्या उचित है? इन कन्याओं के माता पिता इसके बदले  इन कन्याओं को कुछ  इनके रूचि के अनुसार कोई प्रशिक्षण दे या उन्हें आत्म निर्भर बनाये तो क्या उचित नहीं होगा?
क्या आपको नहीं लगता की ये हमारी आस्था पे चोट है..?

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