Friday, August 3, 2012

भूल गया है तू अपना पथ,

भूल गया है तू अपना पथ, 
और नहीं पंखों में भी गति, 
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर । 
खग ! उडते रेहना जीवन भर !

मत डर प्रलय झकोरों से तू, 
बढ आशा हलकोरों से तू, 
क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर । 
खग ! उडते रेहना जीवन भर !

यदि तू लौट पडेगा थक कर,
अंधड काल बवंडर से डर, 
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर । 
खग ! उडते रेहना जीवन भर !

और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते, 
तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों पर । 
खग ! उडते रेहना जीवन भर !
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गोपालदास "नीरज"

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