Tuesday, October 15, 2013

यादें ...विजयदशमी की..






बचपन मे विजयदशमी का जो पहला मेला याद आता है वो अपने दादाजी के साथ देखने गए थे ..गाँव से कुछ दूर लगता था...करीब ७-८ साल की आयु रही होगी ..पैदल जब चलते थक जाते थे तो दादाजी कंधे पे बिठा लेते थे ..वहां मेले में राम और रावण की लड़ाई देखना ,रावण का पुतला जलना और इसके बाद कुछ मेले से खरीदना जरूर होता था..याद है मिटटी की चक्की खरीदना और फिर इमारती खाना जो आनंद देता था वो आज macdonald के बर्गर या पिज़्ज़ा भी नहीं देता..
दूसरी याद है जौनपुर के मेले की जो राजा जौनपुर के तालाब के किनारे लगता था हम भाई बहन पिताजी के साथ नए कपडे पहन के जाते थे .घुमते थे ,खिलौने खरीदते झूला भी झूलते और फिर वापस आ जाते इस उम्मीद के साथ की अगले साल फिर राम और रावण की लड़ाई देखेंगे .रावण का जलता पुतला देखेंगे और देर तक पटाखों की गूज सुने देगी..
तीसरी याद जेसीज़ चौराहे पे लगने वाले मेले की है..तरह तरह की चाट ,आधुनिक परिवेश के बदलते खिलौने ..धनुष बाण और गदा की जगह इलेक्ट्रॉनिक खिलौने,,,,
.आज की विजय दशमी का स्वरुप काफी बदल गया सोशल साइट्स पे बधाई सन्देश धुअधार आते हैं...आज के की जागरूक पढ़ी समाज के एक नहीं कई रावण का को समाप्त करने को तत्पर है परन्तु विभीषण नहीं मिल रहा है..जो सही मार्गदर्शन करे....

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